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वन्दे मातरम की धुन कानों में गूँजती है जब
ऐ मेरे वतन के लोगो, दिल को छु जाता है जब
जाग उठती है मेरे अन्दर भी देश भक्ति की भावना
सोचता हु मैं भी कुछ कर गुजर जाऊ इस देश के लिए।
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बदल डालू में भी इस व्यवस्था को, उखाड़ फेकूं इस भ्रष्टाचार को
पर देश को बदलने की चाहत में खुद ही बदल जाते है हम
ना चाहते हुए भी कुछ ऐसा कर गुजर जाते है हम
बदलना तो था देश को पर खुद ही बदल जाते है हम ।
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इन भ्रष्टाचारियों को सहने की आदत सी बना लेते है हम
अपना कार्य जल्दी करने की चाहत में,भ्रष्टाचारियों को बढ़ावा दे जाते है हम
टूट से जाते है हम, पाप के सामने अपने आप को नतमस्तक कर जाते है हम
समय के आभाव में कुछ ऐसा ही कर गुजर जाते है हम।
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पर अब सोच लिया है हमने भी की बहुत सह लिया अब
इन भ्रष्टाचारियों को और इन नौटंकीबजो को ठिकाने लगा जाएंगे हम
कुछ इस कदर अपने मताधिकार का प्रयोग कर जाएगें हम
कुछ ऐसा कर गुजर जाएंगे हम।
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