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अभी इलका दंगो के दर्द से पूरी तरह उभरा भी नहीं था की एक और समस्या आ खड़ी हुई। गन्ना किसान आत्महत्या करने को मजबूर है, कुछ गन्ना किसानो का गन्ने की फसल से इस कदर मोह-भंग हो चुका है कि उन्होंने गन्ने की फसल को ही आग के हवाले कर दिया । किसानो का मोह-भंग भविष्य में चीनी मिलो और सरकार दोनों के लिए बड़ी समस्या के रूप में उभर सकता है, क्योकि अगर किसान दूसरी फसल की तरफ रुख करता है तो मिलें बंद हो सकती है।
अभी चीनी मिलों पर गन्ना किसानो का गत वर्ष का ही 2400करोड़ बकाया है। बकाया न मिलने और पिरोई सत्र की शुरुवात न होने के कारण किसानो की रातो की नींद उड़ गयी है। पेमेंट न मिलने और पैसे खत्म हो जाने के कारण एक किसान को अपनी बेटी की शादी भी पीछे हटानी पड़ी। पहले दंगो में हुए नुकसान और अब पेमेंट न होने के कारण किसानो की आर्थिक हालत पूरीतरह ख़राब हो चुके है । किसानो का कहना है की कम से कम उनके पिछले सत्र के पैसे तो उन्हें प्रदान किये जाये, मगर सरकार इस मामले में भी नाकाम साबित हो रही है । जगह जगह से आत्महत्या के मामले सामने आने के बाद भी उप्र सरकार को किसानो के दर्द का एहसास नहीं है।
चीनी मिल 280₹ समर्थन मुल्य देने के लिए तैयार है, जिनमे से 260₹ उसी समय बाकि के 20₹ इस सत्र के बाद देने की बात कर रहे है। वहीं किसानो की मांग पहले बकाया देने, समर्थनमूल्य 310 करने और पूरी पेमेंट एक साथ लेने कि है। गन्ने के बीज और खाद की कीमत बढ़ने के कारण गन्ना उगाने की लागत में बढ़ोतरी हुई है, ऐसे में किसान को उल्टा अपने घर से लागत लगानी पड़ रही है। वहीं रही सही कसर केन्द्र सरकार बहार से चीनी आयत करके पूरी कर रही है, जिसके कारण बाजार में चीनी का भाव गिर रहा है और चीनी उद्योग के लिए चीनी घाटे का सौदा साबित हो रही है।
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